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ग़ज़ा युद्धविराम: जंग तो थमेगी पर क्या दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझेगा

  • पहली बड़ी चुनौती ये सुनिश्चित करना कि युद्धविराम क़ायम रहे.
  • तीन चरणों में युद्धविराम, पहला चरण सबसे अहम
  • पश्चिमी देशों को डर कि 42 दिनों के पहले चरण के खत्म होते ही जंग फिर शुरू हो सकती है.
  • सीज़फ़ायर से एक सदी से भी अधिक पुराना इसराइल-फ़लस्तीन संघर्ष ख़त्म नहीं होगा.

इसराइल और हमास के बीच सीज़फ़ायर पर बात बनना एक बड़ी उपलब्धि है. इसे बहुत पहले हो जाना चाहिए था.

पिछले साल मई से ही इस समझौते की अलग-अलग रूप चर्चा रही है. समझौते में हुई देरी के लिए हमास और इसराइल ने एक-दूसरे पर दोष मढ़ा है.

सात अक्तूबर 2023 को हमास के हमलों के बाद इसराइल की जवाबी कार्रवाई ने ग़ज़ा को बर्बाद कर दिया है.

हमास के हमले में करीब 1200 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश इसराइली नागरिक थे. वहीं, अब तक ग़ज़ा में 20 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.

हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इसराइली हमलों में लगभग 50 हज़ार लोग मारे गए हैं. इनमें हमास के लड़ाके और आम लोग दोनों ही शामिल हैं.

लैंसेट मेडिकल जर्नल में हाल ही में छपे एक अध्ययन में कहा गया है कि ये संख्या असल में इससे कहीं अधिक हो सकती है.

समझौते की चुनौतियां

लेकिन समझौते के बाद पहली बड़ी चुनौती ये सुनिश्चित करना है कि युद्धविराम कायम रहे.

पश्चिमी देशों के कई सीनियर राजनयिकों को डर है कि 42 दिनों का पहला चरण खत्म होते ही जंग फिर शुरू हो सकती है.

ग़ज़ा में छिड़े युद्ध के पूरे मध्य-पूर्व में बहुत गहरे परिणाम देखने को मिले.

हालांकि, कई लोगों ने आशंका जताई थी कि ये युद्ध पूरे क्षेत्र में फैल जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसका श्रेय अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने लिया. लेकिन ग़ज़ा की जंग ने पूरे क्षेत्र में एक उथल-पुथल भरा माहौल तो पैदा कर दिया.

इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और उनके पूर्व रक्षा मंत्री पर अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने युद्ध अपराध का आरोप लगाया है.

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस भी दक्षिण अफ़्रीका की ओर से इसराइल पर जनसंहार का आरोप लगाने से जुड़े मामले की जांच कर रहा है.

लेबनान में हिज़्बुल्लाह ने जैसे ही इस युद्ध में दखल दिया, उसे इसराइली हमले के ज़रिए कुचल दिया गया.

यही वो वजह थी जिससे सीरिया में बशर अल-असद के शासन का पतन हुआ.

ईरान और इसराइल ने एक-दूसरे पर सीधे हमले किए, जिससे ईरान कमज़ोर हुआ. इसके सहयोगियों और प्रॉक्सी का नेटवर्क जिसे ईरान ‘एक्सिस ऑफ़ रेज़िस्टेंस’ कहता है वो भी पंगु हो गया है.

यमन में हूतियों ने यूरोप और एशिया के बीच लाल सागर से गुज़रने वाले अधिकांश मालवाहक जहाज़ों को रोक दिया है. ये देखना बाकी है कि क्या ग़ज़ा में युद्धविराम होने के बाद हूती विद्रोही हमलों को रोकने के अपने वादे को पूरा करेंगे.

जहां तक इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष की बात है- ये स्थिति पहले से ज़्यादा कड़वाहट भरी है.

अगर किस्मत साथ दे तो इस युद्धविराम से हत्याएं रुक सकती हैं और इसराइली बंधकों, फ़लस्तीनी कैदियों और बंदियों को उनके परिवारों के पास वापस भेजा जा सकता है.

लेकिन इस सीज़फ़ायर से एक सदी से भी अधिक पुराना संघर्ष ख़त्म नहीं होगा.

नेतन्याहू ने बाइडन से पहले ट्रंप को कहा शुक्रिया

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के कार्यालय ने कहा है कि पीएम की ओर से इस समझौते के बारे में औपचारिक घोषणा की जाएगी. हालांकि, ये घोषणा समझौते को अंतिम रूप देने के बाद की जाएगी, जिसपर अभी काम हो रहा है.

हालांकि, इसराइली पीएम की ओर से आए इस बयान से पहले ही नेतन्याहू ने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और राष्ट्रपति जो बाइडन दोनों को फ़ोन पर समझौता करवाने के लिए शुक्रिया कहा.

दिलचस्प ये है कि नेतन्याहू ने अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति से पहले डोनाल्ड ट्रंप को फ़ोन किया, जो 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद संभालेंगे.

नेतन्याहू के कार्यालय की ओर से आए बयान के अनुसार, “पीएम ने ट्रंप और को बंधकों की रिहाई के लिए ज़ोर देने में मदद के लिए शुक्रिया कहा.”

नेतन्याहू ने ट्रंप को उनके इस बयान के लिए भी धन्यवाद दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि “ग़ज़ा कभी आतंकवाद का सुरक्षित ठिकाना न बने, ये सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका इसराइल के साथ मिलकर काम करेगा.”

बयान के अनुसार, “ट्रंप और नेतन्याहू ने जल्द ही अमेरिका में मुलाकात पर सहमति जताई.”

बयान की आख़िरी लाइन में लिखा है, “प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से बात की और बंधकों की रिहाई के लिए समझौते के लिए उनका भी धन्यवाद कहा.”

ये सीज़फ़ायर डील आने वाले रविवार से लागू होगी, जो राष्ट्रपति पद पर बाइडन का आख़िरी दिन होगा. इसके अगले दिन डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे.

वहीं, व्हाइट हाउस की ओर से एक ब्रीफ़िंग में ये बताया गया है कि हमास पर सैन्य दबाव था, जिसकी वजह से वह बातचीत को तैयार हुआ.

अमेरिकी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इस समझौते में डोनाल्ड ट्रंप के मिडिल ईस्ट राजदूत स्टीव विटकॉफ़ की भी भूमिका रही.

उन्होंने बताया कि विटकॉफ़ बातचीत के दौरान सक्रिय थे और वह मध्य पूर्व में जो बाइडन के शीर्ष सलाहकार ब्रेट मैकगर्क के साथ मिलकर काम कर रहे थे.

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